आखिर ऐसा क्यूं होता है?
दुनिया के सब वही फसाने
तुम भी जानो हम भी जानें
जाने बूझे फिर भी इंसां
जीवन भर इनको ढोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?
व्यर्थ की ज़ंजीरों में जकड़े
आज में बीते कल को पकड़े
आदत से लाचार आदमी
आंख खुली फिर भी सोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?
राग-रंग सब क्षण की बातें
सुख-दुःख मौसम की बरसातें
वो मेरा था ये तेरा है
सोच पथिक फ़िर क्यूं रोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?
क्यूं होता है आखिर ऐसा?
आखिर ऐसा क्यूं होता है?
Sunday, November 25, 2007
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