हमें गुरूजी बतलाते थे
दुनिया की शुरुआत में बच्चों
जीव हुआ करते थे ऐसे
जिनके कोई रीढ़ नहीं थी.
दुनिया की शुरुआत में बच्चों
जीव हुआ करते थे ऐसे
जिनके कोई रीढ़ नहीं थी.
वक्त कटा और मौसम बीते
आगे बढ़ी विकास कहानी
टिककर एक जगह जीवों ने
आगे बढ़ी विकास कहानी
टिककर एक जगह जीवों ने
अपना एक समाज बनाया.
वही गुरूजी ये भी कहते
कुदरत खुद को दोहराती है
पूरा करके अपना फेरा
वापस आती उसी बिंदु पर.
जिसने कभी समाज बनाया
वही असामाजिक अब दिखता
नहीं कहीं पर रहता टिककर
फिर से उसमें रीढ़ नहीं है.
वही गुरूजी ये भी कहते
कुदरत खुद को दोहराती है
पूरा करके अपना फेरा
वापस आती उसी बिंदु पर.
जिसने कभी समाज बनाया
वही असामाजिक अब दिखता
नहीं कहीं पर रहता टिककर
फिर से उसमें रीढ़ नहीं है.