Sunday, November 25, 2007

आखिर ऐसा क्यूं होता है?

आखिर ऐसा क्यूं होता है?

दुनिया के सब वही फसाने
तुम भी जानो हम भी जानें
जाने बूझे फिर भी इंसां
जीवन भर इनको ढोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?


व्यर्थ की ज़ंजीरों में जकड़े
आज में बीते कल को पकड़े
आदत से लाचार आदमी
आंख खुली फिर भी सोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?

राग-रंग सब क्षण की बातें
सुख-दुःख मौसम की बरसातें
वो मेरा था ये तेरा है
सोच पथिक फ़िर क्यूं रोता है
आखिर ऐसा क्यूं होता है?

क्यूं होता है आखिर ऐसा?
आखिर ऐसा क्यूं होता है?

2 comments:

Unknown said...

This poem is really fantastic, and superb......simply written....and having wide, deep and practicle approach.........well said...

Anonymous said...

Aap bahut sundarta sey likhtey hain hindi mein.
Is blog ko jeevit rakhiyega.